- अर्चना श्रीवास्तव

- 11 घंटे पहले
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डेढ़ आंख से लिखी कहानियां कहानी-संग्रह वरिष्ठ लेखक ‘तेजवीर सिंह’ जी की जीवन दृष्टि, अनुभव और संवेदना का समृद्ध दस्तावेज है। यह संग्रह केवल कहानियों का संकलन नहीं, बल्कि एक संजीदा जीवन यात्रा की अभिव्यक्ति है। सराहनीय बात यह है कि लेखक ने लगभग ‘पचास वर्षों के अंतराल’ के बाद पुनः कलम उठाई - जो किसी भी रचनाकार के लिए साहसिक और प्रेरणादायक है।

इस संग्रह के प्रकाशन के बाद लेखक की चार-पांच पुस्तकें और आ चुकी हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि - ‘उम्र लेखन के मार्ग में बाधा नहीं, बल्कि अनुभव का खजाना हो सकती है।’ तेजवीर सिंह जी की कहानियों में जीवन की जीवंतता, सरलता, और गहराई स्पष्ट दिखाई देती है।
यह संग्रह न केवल उन पाठकों को ऊर्जा देगा जो जीवन की ढलान पर हैं, बल्कि युवाओं को भी प्रेरणा देगा कि जीवन को सकारात्मकता और सक्रियता के साथ कैसे जिया जा सकता है।
इस संग्रह की हर कहानी अच्छी है, लेकिन मुझे जो विशेष पसंद आई उसे आप सबके साथ साझा कर रही हूं -
पेंशन - इस संग्रह की पहली कहानी रिटायरमेंट के बाद की मनःस्थिति, सामाजिक व्यवस्था, पारिवारिक संवाद और जीवन की उतरार्ध सूक्ष्म झलक प्रस्तुत करती है। कहानी का यह अंश विशेष रूप से हृदयस्पर्शी है -
“तुम हर समय पेंशन की रट क्यों लगाए रहते हो? क्या तुम्हारा काम पंद्रह सौ रुपये से ही चलेगा? मैंने खीझकर पूछा - तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया - बस मुस्करा दिए। यही उनकी खास अदा थी।”
यह मुस्कान एक पूरी पीढ़ी की स्वीकार्यता, धैर्य और गहराई का प्रतीक बन जाती है।
पीठ - यह कहानी समाज में इज्जत पाने और नौकरी बचाने की चिंता में गिरते नैतिक मूल्यों पर गहरी टिप्पणी करती है। यह पाठक को आत्ममंथन के लिए विवश करती है - कि क्या हम खुद की नजरों में भी उतने साफ हैं जितना समाज के सामने दिखना चाहते हैं।
इस संग्रह की कहानियां अत्यंत सहज, पारदर्शी और आत्मीय भाषा में लिखी गई हैं। इनकी कहानियां - परिवार, समाज, नौकरी, रिश्तों और उम्र के बदलते आयामों को एक आईने की तरह प्रस्तुत करती हैं। हर कहानी कहीं न कहीं से पाठक को खुद से जोड़ लेती है।
यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए पठनीय है, जो जीवन के हर मोड़ पर कुछ नया सीखना और समझना चाहते हैं।
-शुभकामना सहित

