- अर्चना श्रीवास्तव
- 8 जुल॰
- 1 मिनट पठन

हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं- श्री माधव कृष्ण जी को जिन्होनें अपनी 'काव्य-संग्रह' 'कामरेडो को मूर्तिपूजा नही आती' अवलोकनार्थ हेतू दिया | मैं पढी, हर कविता अपने-आप में यथार्थ के धरातल से जुड़ी और भावपूर्ण है।
इसमें समाज की कुरितियों का बहुत ही जीवंत चित्रण है | धर्म ,समाज, देश, गरीबी, राजनीति या साहित्य सब पर गहराई से चिंतन-मनन किया है ।
लेखक के हृदय की वेदना जो कमजोर वर्ग के लिए है, मुझे भी व्यथित कर गयी ।
कुछ कविताएं जो मुझे बहुत पसंद आयी उसकी कुछ पंक्तियों को साझा कर रही हूं , इस उम्मीद के साथ की आप-सभी को भी पसंद आयेगा...........
'मां'-
हे,सबल,निष्कपट ,सत्यनिष्ठ,
मेरी मां, मेरी जननी!
मेरी मां ! तुम केवल भूखण्ड नही ।
'बुद्ध और बम'-
इस बम से नही जन्मा युद्ध,
इस बम से सृजित हुआ बुद्ध,
गढता हुआ अस्तित्व की नयी परिभाषा।
'धर्म का यथार्थ'-
मुझे तो लगा था, इंसान बनने का,
या ,फिर मन शुद्ध हेाने का
करम निष्काम करने का ।
हजारों आवरण से निकलकर ,
सच को पकड.ने का ।
'तुम साथ हमेशा थे'-
जब थका,
रुका,
चिंता रेखा मिट गयी
साथ तुमको देखा ।
इसके अलावा - 'साहित्य संचालक', 'बहुत कुछ होना’, 'उलझन', 'बिटिया', 'प्रकृति से परे', 'मंदिर-मस्जिद', 'पूर्णता', 'प्रतिक्षा'।
सभी कविताएं पढ़ने के बाद अन्तरमन में कुछ प्रश्न छोड़ जाती है, सोचने पर विवश होता है, मन।
निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर रहे माधव कृष्ण जी, शुभकामनाओं के साथ।