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कामरेडो को मूर्तिपूजा नही आती
कामरेडो को मूर्तिपूजा नही आती

हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं- श्री माधव कृष्ण जी को जिन्होनें अपनी 'काव्य-संग्रह' 'कामरेडो को मूर्तिपूजा नही आती' अवलोकनार्थ हेतू दिया | मैं पढी, हर कविता अपने-आप में यथार्थ के धरातल से जुड़ी और भावपूर्ण है।

         इसमें समाज की कुरितियों का बहुत ही जीवंत चित्रण है | धर्म ,समाज, देश, गरीबी, राजनीति या साहित्य सब पर गहराई से चिंतन-मनन किया है ।

         लेखक के हृदय की वेदना जो कमजोर वर्ग के लिए है, मुझे भी व्यथित कर गयी ।

         कुछ कविताएं जो मुझे बहुत पसंद आयी उसकी कुछ पंक्तियों को साझा कर रही हूं , इस उम्मीद के साथ की आप-सभी को भी पसंद आयेगा...........


'मां'-

हे,सबल,निष्कपट ,सत्यनिष्ठ,

मेरी मां, मेरी जननी!

मेरी मां ! तुम केवल भूखण्ड नही ।


'बुद्ध और बम'-

इस बम से नही जन्मा युद्ध,

इस बम से सृजित हुआ बुद्ध,

गढता हुआ अस्तित्व की नयी परिभाषा।


'धर्म का यथार्थ'-

मुझे तो लगा था, इंसान बनने का,

या ,फिर मन शुद्ध हेाने का

करम निष्काम करने का ।

हजारों आवरण से निकलकर ,

सच को पकड.ने का ।


'तुम साथ हमेशा थे'-

जब थका,

रुका,

चिंता रेखा मिट गयी

साथ तुमको देखा ।


इसके अलावा - 'साहित्य संचालक', 'बहुत कुछ होना’, 'उलझन', 'बिटिया', 'प्रकृति से परे', 'मंदिर-मस्जिद', 'पूर्णता', 'प्रतिक्षा'।


सभी कविताएं पढ़ने के बाद अन्तरमन में कुछ प्रश्न छोड़ जाती है, सोचने पर विवश होता है, मन।

निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर रहे माधव कृष्ण जी, शुभकामनाओं के साथ।


मुखर-मौन – श्री हीरालाल अमृत पुत्र का भावपूर्ण काव्य संग्रह

जननी जो नयन-घट प्यार जल छलके,

उतर जाये अन्तर में हलके-हलके ।

'मुखर-मौन' काव्य-संग्रह 'श्री हीरालाल अमृत पुत्र' जी द्वारा लिखा गया अनुपम संग्रह है । 1992 में प्रथम संस्करण निकला था । इसके मुद्रक-सुलभ प्रिंटर्स (बलिया) , जिसके संस्थापक 'श्री नरेंद्र शास्त्री ' जी थे ।

जब घर आते तो उनकी कविता 'भावी बहु के प्रति ' गुनगुनाते थे ।

            आओगी जब मेरे घर तुम दीप सिखा सी ,

            भर दोगी आलोक नयन मे, मन प्रांगण में


संस्थापक 'श्री नरेंद्र शास्त्री '

घर में सभी कहते आप सिर्फ दो पंक्ति ही गुनगुनाते हैं,पूरी कविता सुनाइये उन्होने कहा-मैं कवि को ही घर में बुला देता हूं उन्ही से सुन लो- श्री नरेंद्र शास्त्री जी कवि को एक साधक कवि मानते थे- उन्ही के शब्दो में --- इन कविताओ के साथ मन ज्योंही एकाकार होता है, ये हमारी हमसफर बन जाती है - एक निश्छल दोस्त की तरह रास्ता दिखाती सी जान पडती है। हमे आश्चर्य है कि कवि ने इतनी सशक्त रचनायें लिखकर भी अपने को गोपनीयता के धुंध में क्यो छिपा रखा है ? पर , चैत्र माह में आंछी के फूल की खुशबु हमे मतवाला बना जाती है,वैसे ही 'अमृत पुत्र "की कवितायें ज्योंही किसी सुहृद-संवेदनशील गुण ग्राहक पाठक की दृष्टि में पडती है वह दीवाना -सा हो जाता है । मेरा विचार 'मुखर-मौन पढने के बाद यथावत है---

      हर दिशा से आ रही विषवाहिनी बोझिल हवा है,

      साथ यदि तुम हो सदा अमरत्व का होगा सहारा ।

      प्रणय के पीयूष से पग है प्रलय का नित्य हारा,।।






उनकी हर कविता आत्मसात करने की इच्छा हो जाती है--इस कठोर धरा पर भी सहजता से उर्जा मिलती है । और निरन्तर कर्मपथ पर प्रेरित करती है। उनकी कविताओ में अपने मातृभूमि और देश प्रेम के स्वर है ,जो आत्मिक सुख और गर्व महसूस कराती है ।

इस काव्य-संग्रह में जाने माने साहित्यकारों की अपनी-अपनी सममतियां है जैसे -> महादेवी वर्मा, आचार्य पं0 सीताराम चतुर्वेदी, श्री रामसिंहासन सहाय 'मधुर ' श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, डाक्टर विवेकी राय, डाक्टर शोभनाथ लाल ।

            आओ भारत माता का ज्यान करें,

            कोटि-कोटि कंठो से हम गुण-गान करें।

            मिट्टी जो हम सबका तन निर्माण करें,

            पवन , प्राण का ,जीवन का आधान करें

            पानी जिसका नस-नस मे बन लहू बहे,

            पर्वत मांसपेशियां बन बल-दान करें ।



इस काव्य-संग्रह में जाने माने साहित्यकारों की अपनी-अपनी सममतियां है जैसे -> महादेवी वर्मा, आचार्य पं0 सीताराम चतुर्वेदी, श्री रामसिंहासन सहाय 'मधुर ' श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, डाक्टर विवेकी राय, डाक्टर शोभनाथ लाल ।





  • लेखक की तस्वीर: अर्चना श्रीवास्तव
    अर्चना श्रीवास्तव
  • 11 अप्रैल
  • 1 मिनट पठन
क्या लिखूं मैं गरीबी से जूझते सड़क पर सोते हुए की कहानी । काले और सफेद चित्र में व्यक्ति अकेला सुनसान गली में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए। आसपास की इमारतें, नंगी शाखाओं वाला पेड़।

क्या लिखूं मैं,

एक राजा-रानी की कहानी ।

या लिखूं ,

नेता और जनता की कहानी ।

या लिखूं,

शाखों से टूटती हुई फूल की कहानी ।

या लिखूं ,

नशे में धुत्त पति से ममता की भीख

मांगती लाचार मां की कहानी ।

या लिखूं,

गरीबी से जूझते सड़क पर सोते

हुए की कहानी ।

या लिखूं,

इस दिखावे के जीवन से परेशान

बच्चों की कहानी ।

या लिखूं,

धर्म के नाम पर किये पाप की कहानी

या लिखूं,

जाति के नाम पर भेदभाव की कहानी

क्या लिखूं मैं ।



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