अरमान
- अर्चना श्रीवास्तव
- 9 फ़र॰
- 1 मिनट पठन

ज़िन्दगी है छोटी
अरमान हैं बड़े
पूरे करूं भी तो कैसे |
ये बढ़ती हुई मन की रोशनी
ये ढलती हुई सांझ
समय को पकड़ कर रक्खूँ भी तो कैसे ।
ये बढ़ते हुए कर्तव्य
ये जुड़े हुए सम्बन्ध
ये छूटती हुई जीवन की डोर
पकड़कर रक्खूँ भी तो कैसे |
ये मन का विश्वास
कि आने वाली पीढ़ी के लिए
कुछ कर के जाऊँ
लेकिन करूँ भी तो कैसे ।
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