- अर्चना श्रीवास्तव

- 21 सित॰
- 2 मिनट पठन

किसी भी कवि की सबसे बड़ी उपलब्धि यह होती है कि उसके शब्द केवल पढ़े न जाएं, बल्कि भीतर तक महसूस किए जाएं। केशव मोहन पाण्डे का काव्य संग्रह "मैं रोज सपने बुनता हूं" इसी कसौटी पर खरा उतरता है। उनकी कविताओं में गहन संवेदना, गूढ़ अभिव्यक्ति और सामाजिक यथार्थ का कलात्मक चित्रण निश्चय ही उल्लेखनीय उपलब्धि है।
कवि की कविताएं पाठक को केवल छूती नहीं बल्कि बांधकर रखती हैं। वे हमें अपने संसार में खींच ले जाती हैं, जहां भावनाएं, पीड़ा संघर्ष और सपनों की उजली रेखाएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस संग्रह का शीर्षक अपने आप में सार्थक है।
हर कविता उस सपने की बुनावट है जो व्यक्तिगत से सामाजिक और अंततः मानवीय संवेदनाओं तक फैलती जाती है।
इस काव्य संग्रह की कविताओं की कुछ पंक्तियां आपसे साझा कर रही हूं -
रोज बुनता हूं सपने
अपने ही
किसी सुखद भविष्य के लिए नहीं,
बुहार कर
कंकड़ों को
देने के लिए
कुछ स्वच्छ, सीधा, सपाट राजपथ
अपनी जिम्मेदारियों को।
लड़की
आज भी
नहीं बोल पा रही है
ठीक से
वह
आज भी
धरती बनकर
बिछती जा रही है
पांवों के नीचे
सत्य को लकवा नहीं मारा
है दलित
दमित
समय के पाषाण खंड से
और उन्मत है असत्य
कर रहा अट्टाहास
मद में विजय के
घमंड से।
मेरी कविता
सप्तपदी में साथ
प्रियतमा का
मेरी कविता
धरती का धैर्ययुक्त
भाव क्षमा का
कवि अपने सपनों को केवल व्यक्तिगत आकांक्षाओं तक सीमित नहीं रखते। 'रोज बुनता हूं सपने' कविता में स्पष्ट करते हैं कि सपने किसी सुखद भविष्य के लिए मात्र नहीं हैं, बल्कि जिम्मेदारियों को निभाने और समाज के लिए एक समतल स्वच्छ मार्ग तैयार करने का प्रयास है।
'मैं रोज बुनता हूं सपने' केवल एक काव्य संग्रह नहीं बल्कि हमारे समय की नब्ज को टटोलने वाला साहित्यिक दस्तावेज है। इसमें स्त्री की पीड़ा, दलित का संघर्ष समाज की विडंबना, और भविष्य की उम्मीद सबकुछ है।
युवा कवि केशव मोहन पाण्डे की यह कृति हिंदी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक सशक्त हस्तक्षेप के रूप में दर्ज की जानी चाहिए।
कवि की भाषा सरल है लेकिन प्रभावशाली बिंब और प्रतीकों का प्रयोग किया है। वे सीधे हृदय को स्पर्श करती हैं यही सादगी उनकी कविताओं को गहराई और असरदार बनाती है।
कवि केशव मोहन पाण्डे जी को शुभकामनाएं, अपने कर्मपथ पर निरंतर अग्रसर रहें।
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