फाल्गुनी बयार
- अर्चना श्रीवास्तव
- 2 मार्च
- 1 मिनट पठन

मचल रही है फाल्गुनी बयार
सहला रही पेड़ पौधे के तन को,
पतझड़ में जो उदासी आ गई थी उनके तन पर,
उसे मरहम लगा रही है ।
धीरे-धीरे मुस्कराने लगे हैं
पेड़-पौधे
उनके तन पर नई कोपले जो आने लगी है ।
खुशबू बिखेरने लगी है,
आम और महुआ की मोजरें,
भौरें मंडराने लगे उन्मुक्त भाव से ।
हट गयी है ,जो कोहरे की चादर
सूरज की लालिमा नज़र आने लगी है ।मुरझाई कलियां फिर मुस्कराते लगी हैं।
फैली थी जो फिजा में विषैलीं हवायें ,
फाल्गुनी बयार कुछ तो कम करने लगी हैं ।
अलसाए बदन पर जो लगी बयार तो
नयी उर्जा जगने लगी है ।
मचल रही है फाल्गुनी बयार।
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