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एहसास

  • लेखक की तस्वीर: अर्चना श्रीवास्तव
    अर्चना श्रीवास्तव
  • 3 फ़र॰
  • 1 मिनट पठन

कभी-कभी अपने होने पर भी भ्रम होता है ।

मै-मैं ही हूं या कोई और ,

सोचती कुछ हूं ,बोलती कुछ हूं,

मतलब कुछ और निकलता है ।

हकीकत कुछ और है,बयां कुछ और करती हूं ।

कभी-कभी वक्त को सम्भालने की कोशिश में,

सपने फिसल जाते हैं ।

अपने को ही समझने में समय निकल जाता है ।

दर्द तो महसूस होता नही,उदासी घिर जाती है ,

बेवक्त उलझने आती है,सुलझाने में वक्त फिसल जाता है ।

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